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16:31, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>ख़ुश्बू के आसपास हैं कुछ और लोग भी
मेरी तरह उदास हैं कुछ और लोग भी ।
शायद हक़ीक़तों ने सब कुछ बदल दिया
सपनों में बदहवास हैं कुछ और लोग भी ।
कालिख में क़ैद हो गए सांसों के क़ाफिले
फिर भी घुली कपास हैं कुछ और लोग भी ।
तुम ही कहां गुलाम हो उनकी निगाह के
पुश्तों से उनके दास हैं कुछ लोग भी ।
बेहतर है अपने आप को रखिए ज़मीन पर
मज़बूरियों में ख़ास हैं कुछ और लोग भी ।</poem>