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17:12, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>भरी सावन की बदरी
नैनों में ..
चाहत में छिपा
बंसत ..
सर्द हैं आहें
गर्म सी नरमी
बाँहों में
मौसम का हर रूप
छिपा है यहीं
इन नजरों में
और इनको
समझने को
एक बार तो
नजरों के रस्ते से
तुम्हें गुज़रना होगा
</poem>