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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>'''१'''
गुलमोहर के फूल
जैसे हाथ पर कोई
अंगार है जलता ...

'''२'''
जेठिया आग से
झुलसे है बहार
अमलतास से मिटे
कुछ गर्मी की आस

'''३'''
झूमे पत्ते
डाली डाली
झूम के बरसा मेघ
सावन की ऋतु आ ली

'''४'''
कैसे मदमस्त
हो के छेड़े मल्हार
पत्तियों पर बुंदिया की
पड़े है जब मार.....

'''५'''
उमड़ी घटा
दीवाने बदरा
शोर मचाये
नाचा मन मोर भी
पर तुम न आये ..
बिखरी जुल्फों को
अब कौन सुलझाए ...
</poem>
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