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20:30, 18 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>बातें
मासूम सी मेरी बातें
अभी बहुत नादान है
तुम्हारी बड़ी बड़ी बातो से
यह बिल्कुल अनजान है,
करने हैं अभी कई
छोटे छोटे काम मुझको..
बिखरे घर को
फिर से सजाना है..
मुरझाये पौधों को
पानी पिलाना है..
संवारना है अभी
टूटे हुए रिश्तों को,
बिखरे हुए हैं शब्द
उनको कागज पर बिछाना है..
है यह काम बहुत छोटे छोटे
पर इसी से जीवन को सजाना है
तुम्हारी बातें हैं बहुत बड़ी
अभी उन में दिल नही उलझाना है!!
</poem>