गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं / रसखान
540 bytes added
,
09:07, 13 नवम्बर 2006
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।
ओढ़ि पिताम्बर लै लकुटी, बन गोधन ग्वालन संग फिरौंगी।।
भावतो तोहिं जो है रसखान, तो तोरे कहे सब स्वाँग भरौंगी।
पै वा मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।
Anonymous user
137.138.179.152