Changes

चंद शेर / बशीर बद्र

18 bytes removed, 13:14, 14 नवम्बर 2006
ज़िन्दगी तूनें तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फ़ैलाऊँ फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।
--
वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
कोई जो दूसरा पहनें पहने तो दूसरा ही लगे ।
--
लोग टूट जाते हैं एक घर बनानें बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ बस्तियां जलानें में।
--
पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखो आँखों को अभी ख्वाब छुपानें छुपाने नहीं आते ।
--
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था.
फ़िर फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।
--
मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ
चुभनें चुभने लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे ।