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तुम मिले / माखनलाल चतुर्वेदी

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तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई!
 
भूलती-सी जवानी नई हो उठी,
 
भूलती-सी कहानी नई हो उठी,
 
जिस दिवस प्राण में नेह बंसी बजी,
 
बालपन की रवानी नई हो उठी।
 
किन्तु रसहीन सारे बरस रसभरे
 
हो गए जब तुम्हारी छटा भा गई।
 
तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई।
 
 
घनों में मधुर स्वर्ण-रेखा मिली,
 
नयन ने नयन रूप देखा, मिली-
 
पुतलियों में डुबा कर नज़र की कलम
 
नेह के पृष्ठ को चित्र-लेखा मिली;
 
बीतते-से दिवस लौटकर आ गए
 
बालपन ले जवानी संभल आ गई।
तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई।
 
 
तुम मिले तो प्रणय पर छटा छा गई,
 
चुंबनों, सावंली-सी घटा छा गई,
 
एक युग, एक दिन, एक पल, एक क्षण
 
पर गगन से उतर चंचला आ गई।
प्राण का दान दे, दान में प्राण ले
 
अर्चना की अमर चाँदनी छा गई।
 
तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई।
</poem>
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