{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"}}{{KKCatKavita}}<poem>नर जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ
मेरे श्रम सिंचित सब फल।
जीवन के रथ पर चढ करचढ़कर
सदा मृत्यु पथ पर बढ़ कर
महाकाल के खरतर शर सह
सकूँ, मुझे तू कर दृढतरदृढ़तर;
जागे मेरे उर में तेरी
मूर्ति अश्रु जल धौत विमल
जननि, जन्म श्रम संचित पल।
बाधायें बाधाएँ आएँ तन पर
देखूँ तुझे नयन मन भर
मुझे देख तू सजल दृगों से
अपलक, उर के शतदल पर;
क्लेद युक्त, अपना तन दूंगा
मुक्त करूंगा तुझे अटल
तेरे चरणों पर दे कर बलि
सकल श्रेय श्रम संचित फल</poem>