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जीना अपने ही में / सुमित्रानंदन पंत
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19:20, 12 अक्टूबर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>जीना अपने ही में
एक महान कर्म है
जीने का हो सदुपयोग
लोक कर्म भव सत्य
प्रथम सत्कर्म कीजिए
</poem>
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