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पाषाण खंड / सुमित्रानंदन पंत
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03:02, 13 अक्टूबर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>वह अनगढ़ पाषाण खंड था-
मैंने तपकर, खंटकर,
भीतर कहीं सिमटकर
तन्मय अंतर को
देता सुख
</poem>
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