{{KKCatKavita}}
<poem>
जरासंध की जंघाओं से दो फांक हो करकितनी सदियाँ बीत गयींजुडते हैं इस तरह टुकडे अस्तित्व केबुलबुल नें अपना दिल बोयाजैसे कि छोटी नदिया गंगा में मिल गयी होचाहो रोयी तो जाँच कर लोअब मिल गया है सब कुछ, एक रंग हो गया हैहर हर हुई है गंगे, हर कुछ समा गया हैफिर उठ खडा हुआ हूँ, हिम्मत बटोर ली हैमैं जानता हूँ दुनिया भी भीम हो गयी हैवो दांव-पेंच जानें कि फिर चिरा न जाऊंसींच गये आँसूलेकिन लडूंगा जब तक सागर में मिल न जाऊंनन्हा सा अंकुर फूट पडा
मैं जानता हूँ कान्हा तुम राज जानते होसैय्याद जाल में फांस गयाटुकडा उठा के तृण काअब बुलबुल पिंजरे में गाती थीदो फांक कर के तुमने उलटा रखा है ऐसेयाद उसे अब भी आती थीजैसे कि वक्त मेरा मुझको छला किये नन्हा सा अंकुर फूट पडा हैदिल एक पेड बन जायेगाफिर फूलों से लद जायेगा..
मैं मुस्कुरा रहा हूँआकाश भरा था आँखों मेंमैं मिटने जा रहा हूँरोती थी चीख चीख रोती थीतुममें समा रहा हूँसैय्याद समझता था गाती हैफिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?एसे ही बुलबुल मर जाती हैतुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके दिल अब बरगद हो सत्य केआया हैउसकी छाती में छाया हैफूल मगर कैसे खिलते हैंजब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व केबुलबुल गा जाये तो जानें...
</poem>