Changes

यही बेहतर / रमेश रंजक

7 bytes removed, 13:47, 19 अक्टूबर 2009
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= रमेश रंजक |संग्रह=
}}
{{KKCatNavgeet‎}}<poem>
इधर दो फूल मुँह से मुँह सटाए
 
बात करते हैं
 
यहीं से काट लो रस्ता
 
यही बेहतर
 
हमें दिन इस तरह के
 
रास आए नहीं ये दीगर
 
तसल्ली है कहीं तो पल रहा है
 
प्यार धरती पर
 
उमर की आग की परचम उठाए
 
बात करते हैं
 
यहीं से काट लो रस्ता
 
यही बेहतर
 
खुले में यह खुलापन देखकर
 
जो चैन पाया है
 
कई कुर्बानियों का रंग
 
रेशम में समाया है
 
हरे जल पर पड़े मस्तूल-साए
 
बात करते हैं
 
यहीं से काट लो रस्ता
 
यही बेहतर
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits