|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
<poem>जो पै हरिहिंन हरिहिं न शस्त्र गहाऊं। तौ लाजौं गंगा जननी कौं सांतनु-सुतत सुतन कहाऊं॥
स्यंदन खंडि महारथ खंडौं, कपिध्वज सहित डुलाऊं।
इती न करौं सपथ मोहिं हरि की, छत्रिय गतिहिं न पाऊं॥
पांडव-दल सन्मुख ह्वै धाऊं सरिता रुधिर बहाऊं।
सूरदास, रणविजयसखा कौं जियत न पीठि दिखाऊं॥
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