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भजु मन चरन संकट-हरन / सूरदास

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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग बिहाग
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भजु मन चरन संकट-हरन।
 
सनक, संकर ध्यान लावत, सहज असरन-सरन॥
 
सेस, सारद, कहैं नारद संत-चिन्तन चरन।
 
पद-पराग-प्रताप दुर्लभ, रमा के हित-करन॥
 
परसि गंगा भई पावन, तिहूं पुर-उद्धरन।
 
चित्त चेतन करत, अन्तसकरन-तारन-तरन॥
 
गये तरि ले नाम कैसे, संत हरिपुर-धरन।
 
प्रगट महिमा कहत बनति न गोपि-डर-आभरन॥
 
जासु सुचि मकरंद पीवत मिटति जिय की जरन।
 
सूर, प्रभु चरनारबिन्द तें नसै जन्म रु मरन॥
</poem>
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