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चाह / महादेवी वर्मा
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15:07, 24 अक्टूबर 2009
कलियों के उच्छवास शून्य में तानें एक वितान,
तुहिनकणों
तुहिन-कणों
पर मृदु कंपन से सेज
बिछादें
बिछा दें
गान;
जहाँ सपने हों पहरेदार,
Rajeevnhpc102
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