Changes

कल और आज / नागार्जुन

3 bytes added, 16:37, 24 अक्टूबर 2009
|संग्रह=हज़ार-हज़ार बाहों वाली / नागार्जुन
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>
अभी कल तक
 
गालियॉं देती तुम्‍हें
 
हताश खेतिहर,
 
अभी कल तक
 
धूल में नहाते थे
 
गोरैयों के झुंड,
 
अभी कल तक
 
पथराई हुई थ‍ी
 
धनहर खेतों की माटी,
 
अभी कल तक
 
धरती की कोख में
 
दुबके पेड़ थे मेंढक,
 
अभी कल तक
 
उदास और बदरंग था आसमान!
 
और आज
 
ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं
 
तुम्‍हारे तंबू,
 
और आज
 
छमका रही है पावस रानी
 
बूँदा-बूँदियों की अपनी पायल,
 
और आज
 
चालू हो गई है
 
झींगुरो की शहनाई अविराम,
 
और आज
 
ज़ोरों से कूक पड़े
 
नाचते थिरकते मोर,
 
और आज
 
आ गई वापस जान
 
दूब की झुलसी शिरायों के अंदर,
 
और आज बिदा हुआ चुपचाप ग्रीष्‍म
 
समेटकर अपने लाव-लश्‍कर।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits