|रचनाकार=नागार्जुन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>नभ में चौकडियां चौकडियाँ भरें भले
शिशु घन-कुरंग
खिलवाड़ देर तक करें भले
शिशु घन-कुरंग
लो, आपस में गुथ गये गए खूब
शिशु घन-कुरंग
लो, घटा जल में गये गए डूब
शिशु घन-कुरंग
लो, बूंदें पडने लगीं, वाह
शिशु घन-कुरंग
लो, कब की सुधियाँ जगीं, आह
शिशु घन-कुरंग
पुरवा सिह्कीसिहकी, फिर दीख गयेगए
शिशु घन-कुरंग
शशि से शरमाना सीख गयेगए
शिशु घन-कुरंग
''१९६४ में लिखित''
</poem>