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|रचनाकार=नागार्जुन
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<Poem>
मानसून उतरा है
 
जहरी खाल की पहाड़ियों पर
 
बादल भिगो गए रातोंरात
 
सलेटी छतों के
 
कच्चे-पक्के घरों को
 
प्रमुदित हैं गिरिजन
 
सोंधी भाप छोड़ रहे हैं
 
सीढ़ियों की
 
ज्यामितिक आकॄतियों में
 
फैले हुए खेत
 
दूर-दूर...
 
दूर-दूर
 
दीख रहे इधर-उधर
 
डाँड़े के दोनों ओर
 
दावानल-दग्ध वनांचल
 
कहीं-कहीं डाल रहीं व्यवधान
 
चीड़ों कि झुलसी पत्तियाँ
 
मौसम का पहला वरदान
 
इन तक भी पहुँचा है
 
जहरी खाल पर
 
उतरा है मानसून
 
भिगो गया है
 
रातोंरात सबको
 
इनको
 
उनको
 
हमको
 
आपको
 
मौसम का पहला वरदान
 
पहुँचा है सभी तक...
'''1984 में रचित
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