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यह दंतुरित मुसकान / नागार्जुन
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07:08, 25 अक्टूबर 2009
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<Poem>
तम्हारी
तुम्हारी
यह दंतुरित मुस्कान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूली-धूसर तुम्हारे ये गात...
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तम्हारी
तुम्हारी
यह दंतुरित मुस्कान
अनिल जनविजय
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