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|रचनाकार=तुलसीदास
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कब देखौंगी नयन वह मधुर मूरति ?
राजिवदल-नयन, कोमल-कृपा-अयन,
तुलसीदास रघुबीरकी सोभा सुमिरि,
भई है मगन नहिं तनकी सूरति॥२॥
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