Changes

भज मन रामचरन सुखदाई / तुलसीदास

25 bytes added, 17:13, 26 अक्टूबर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}<poem>
भज मन रामचरन सुखदाई॥ध्रु०॥
जिहि चरननसे निकसी सुरसरि संकर जटा समाई।
सिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक सेष सहस मुख गाई।
तुलसीदास मारुत-सुतकी प्रभु निज मुख करत बड़ाई॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,280
edits