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अर्जुन की प्रतिज्ञा / मैथिलीशरण गुप्त
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16:48, 27 अक्टूबर 2009
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|रचनाकार=मैथिलीशरण गुप्त
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<poem>
उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा,
मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा ।
सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ-वधकरूँ,
तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनल में जल मरूँ ।
</poem>
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