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गुणगान / मैथिलीशरण गुप्त
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16:51, 27 अक्टूबर 2009
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<poem>तेरे घर के द्वार बहुत हैं,
किसमें हो कर आऊं मैं?
सब द्वारों पर भीड़ मची है,
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