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::::::झंडा है बादल!
चांदी, सोने, हीरे, मोती
::से सजवा छाते
जो अपने सिर पर तनवाते
::थे, अब शरमाते,
::::फूल-कली बरसाने वाली
::::::दूर गई दुनिया,
वज्रों के वाहन अम्बर में,
::निर्भय घहराते,
इन्द्रायुध भी एक बार जो
::हिम्मत से औड़े,
छ्त्र हमारा निर्मित करते
::साठ कोटि करतल।
हम ऐसे आज़ाद, हमारा
::झंडा है बादल!
</poem>
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