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01:21, 28 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>मेरे कलेजे को कुचल कर
तुम्हारे मासूम पैर जख़्मी तो नहीं हुए?
मेरे प्यार
मेरी आस्थाएँ सिसक उठी हैं,
इतना भी यकीन न था तुम्हें
कह कर ही देखा होता कि मौत आये तुम्हें
कलेजा चीर कर
तुम्हें फूलों पर रख आता......
२८.०५.१९९७</poem>