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अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे / सुदर्शन फ़ाकिर
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10:13, 26 नवम्बर 2006
देखनेवालों तबस्सुम को करम मत समझो <br>
उंहें
उन्हें
तो देखनेवालों पे हँसी आती है <br><br>
चाँदनी रात मोहब्बत में हसीन थी "फ़ाकिर" <br>
अब तो बीमार उजालों पे हँसी आती है <br><br>
Lalit Kumar
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