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पिल्ला / काका हाथरसी

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|रचनाकार=काका हाथरसी
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[[Category:हास्य रस]]
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पिल्ला बैठा कार में, मानुष ढोवें बोझ
 
भेद न इसका मिल सका, बहुत लगाई खोज
 
बहुत लगाई खोज, रोज़ साबुन से न्हाता
 
देवी जी के हाथ, दूध से रोटी खाता
 
कहँ 'काका' कवि, माँगत हूँ वर चिल्ला-चिल्ला
 
पुनर्जन्म में प्रभो! बनाना हमको पिल्ला
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