गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
व्यर्थ नहीं हूँ मैं / कविता किरण
No change in size
,
13:53, 31 अक्टूबर 2009
तभी तो तुम कर पाते हो गर्व अपने पुरूष होने पर
मैं झुकती हूँ!
तभी तो
ऊंचा
ऊँचा
उठ पाता है
तुम्हारे अंहकार का आकाश।
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,863
edits