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धूप के धान / अचल वाजपेयी
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18:29, 31 अक्टूबर 2009
|संग्रह=शत्रु-शिविर तथा अन्य कविताएँ / अचल वाजपेयी
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तुम जो धूप में
धान बोते हुए
गर्व से निकल गए
पीछे मुड़ो और देखो
तुम कीच भरे पानी में
गहरे धँस चुके हो
और धान
उन्हें धूप ने
एक काले रजिस्टर पर
टाँक दिया है
</poem>
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