|रचनाकार=अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
शरद चांदनी बरसी
अँजुरी भर कर पी लो
शरद चांदनी बरसी<br>ऊँघ रहे हैं तारेअँजुरी भर कर पी सिहरी सरसीओ प्रिय कुमुद ताकतेअनझिप क्षण मेंतुम भी जी लो<br><br>।
ऊँघ रहे हैं तारे<br>सींच रही है ओससिहरी सरसी<br>हमारे गानेओ प्रिय कुमुद ताकते<br>अनझिप क्षण घने कुहासे में<br>तुम भी जी लो ।<br><br>झिपतेचेहरे पहचाने
सींच रही है ओस<br>खम्भों पर बत्तियाँहमारे गाने<br>खड़ी हैं सीठीघने कुहासे में<br>ठिठक गये हैं मानोंझिपते<br>पल-छिनचेहरे पहचाने<br><br>आने-जाने
खम्भों पर बत्तियाँ<br>उठी ललकखड़ी हैं सीठी<br>हिय उमगाठिठक गये हैं मानों<br>अनकहनी अलसानीपलजगी लालसा मीठी,खड़े रहो ढिंगगहो हाथपाहुन मन-छिन<br>भाने,ओ प्रिय रहो साथआनेभर-जाने<br><br>भर कर अँजुरी पी लो
उठी ललक<br>हिय उमगा<br>अनकहनी अलसानी<br>जगी लालसा मीठी,<br>खड़े रहो ढिंग<br>गहो हाथ<br>पाहुन मन-भाने,<br>ओ प्रिय रहो साथ<br>भर-भर कर अँजुरी पी लो<br><br> बरसी<br>शरद चांदनी <br>मेरा अन्त:स्पन्दन<br>तुम भी क्षण-क्षण जी लो !<br><br/poem>