|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
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समय क्षण-भर थमा सा:
फिर तोल डैने
उड़ गया पंछी क्षितिज की ओर:
मद्धिम लालिमा ढरकी अलक्षित।
तिरोहित हो चली ही थी कि सहसा
फूट तारे ने कहा: रे समय,
::तू क्या थक गया?
रात का संगीत फिर
तिरने लगा आकाश में।
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