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कालेमेग्दान / अज्ञेय

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|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}इधर <brpoem>इधर परकोटे और भीतरी दीवार के बीच <br> लम्बी खाई में <br> ढंग से सँवरे हुए <br> पिछले महायुद्ध के हथियारों के ढूह: <br> रूण्डे टैंक, टुण्डी तोपें, नकचिपटे गोला-फेंक— <br> सब की पपोटे-रहित अन्धी आँखें <br> ताक रहीं आकाश। <br>
उधर <br> परकोटे और दीवार के बीच टीले पर <br> बेढंगे झंखाड़ों से अधढँके <br> मठ और गिरजाघर के खंडहर <br> चौकाठ-रहित खिड़कियों से उमड़ता अंधियार <br> मनुष्यों को मानों खोजता हो धरती पर... <br>
ईश्वर रे, मेर बेचारे, <br> तेरे कौन रहे अधिक हत्यारे? <br> <br>
<span style="font-size:14px">बेओग्राद, युगोस्लाविया]
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''कालेमेग्दान'': सावा और दोगउ (डैन्यूब) के संगम पर प्राचान दुर्ग, जिस के भीतर अब अस्त्र-संग्रहालय भी है।</span>
</poem>
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