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रिमझिम जैसी / अभिज्ञात
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17:28, 4 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अभिज्ञात
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{{KKCatKavita}}
<poem>तुम मेरे जीवन के मरुथल
में सावन की रिमझिम जैसी
आई हो लेकर रतनारे
छूट गया हर एक विशेषण
तुम ही मेरा कुल परिचय-सी।
</poem>
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