|संग्रह = सबूत / अरुण कमल
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सहसा रक्खा पाँव जो तुमने
:::खुल पड़े
:::दसों दल
:::झर उठे पराग
आंगन में खिल रहा है मेरे
दसमुख फूल
कैसे आज बुहारूँ आंगन
पूरे आंगन पसर गई है बेल
बार-बार बझती पाँवों में
लगता है अब चढ़ जाएगी
कंधों पर छाती पर लत्तर
खिल रहा है तन की मिट्टी के
कण-कण में दसमुख फूल
खिल रहा है दसमुख फूल दसों दिशा में
दसों ओर से दसमुख फूल
नाच रही
छत्तीसगढ़ की नर्तकी वह
देह ही है कथा
देह ही है रूप
पूरा-पूरा वृक्ष खुलकर बना दसमुख फूल
किस सूर्य ने
किस पवन ने
किस नदी ने
आज खिलाया दसमुख फूल?
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