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अकारण प्यार से / अरुणा राय

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स्वप्न में <brpoem>स्वप्न में मन के सादे कागज पर<br>एक रात किसी ने<br>ईशारों से लिख दिया अ.... <br> और अकारण <br> शुरू हो गया वह<br>और एक अनमनापन बना रहने लगा<br>फिर उस अनमनेपन को दूर करने को<br>एक दिन आई खुशी<br>और आजू-बाजू कई कारण <br> खडें कर दिए<br>कारणों ने इस अनमनेपन को पांव दे दिए<br>और वह लगा डग भरने , चलने और <br> और अखीर में उड़ने<br>अब वह उड़ता चला जाता वहां कहीं भी<br>जिधर का ईशारा करता अ... <br> और पाता कि यह दुनिया तो <br> इसी अकारण प्यार से चल रही है<br>और उसे पहली बार प्यारी लगी यह<br>कि उसे पता ही नही था इसकी बाबत <br> जबकि तमाम उम्र वह<br>इसी के बारे में कलम घिसता रहा था<br><br>
यह सोच-सोच कर उसे <br> खुद पर हंसी आई<br>और अपनी बोली में उसने <br> खुद को ही कहा - भक... बुद्धू... <br> भक... <br> अ ने दुहराया उसे<br>और बिहंसता जाकर झूल गया <br> उसके कंधों से<br>अब दोनों ने मिलकर कहा - भक... <br> और ठठाकर हंस पड़े<br>भक... <br>
दूर दो सितारे चमक उठे...
</poem>
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