{{KKCatKavita}}<poem>जीवन के तमाम रंग<br>खिलते हैं अरूणाकाश<br>में<br>तितलियाँ उड़ती हैं<br>पक्षी अपनी चहचहाटों<br>से<br>गुँजाते हैं अरूणाकाश<br>तड़कर गिरने से पहले<br>बिजलियां कौंधती हैं<br>अरूणाकाश में<br>वहाँ संचित रहते हैं<br>सारे राग-विराग<br>दुखी आदमी ताकता है ऊपर<br>अरूणाकाश<br>ठहाके उसे ही गुँजाते<br>हैं<br>आँसुओं के साथ मिट्टी<br>में गिरता<br>जब भारी हो जाता है दुख<br>तब ऊपर उठती आह<br>समेट लेता है जिसे<br>