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अन्त / नरेन्द्र मोहन

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'''{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार : =नरेन्द्र मोहन''' }}{{KKCatKavita‎}}<poem>
मैं मौन का दरवाज़ा
 
लांघता हूँ
 बिना शब्द किये किए
अन्त की ओर
 
यहाँ न रंग दिखते हैं न रेखाएँ
 
न रूप न अरूप
 
दिखती है
 
एक चमकीली मछली
 
जूझती
 
हाँफती
 
तेज़ लहरों के खिलाफ
 
अन्त की शुरूआत ऐसे ही होती है क्या ?
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