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शो’लः-ए-ख़ुर्शीद-ए-महशर / अली सरदार जाफ़री
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05:07, 6 नवम्बर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
|संग्रह=मेरा सफ़र / अली सरदार जाफ़री
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
'''शो’लः-ए-ख़ुर्शीद-ए-महशर'''
अकीदे बुझ रहे शमे-जाँ गुल होती जाती है
मगर ज़ौके़-जुनूँ की शो’ला-सामानी नहीं जाती
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