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03:27, 7 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=बशीर बद्र
|संग्रह=आस / बशीर बद्र
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<poem>
रेत भरी है इन आँखों में, आँसू से तुम धो लेना
कोई सूखा पेड़ मिले तो उससे लिपट कर रो लेना
इसके बाद बहुत तन्हा हो जैसे जंगल का रस्ता
जो भी तुमसे प्यार से बोले, साथ उसी के हो लेना
कुछ तो रेत की प्यास बुझाओ, जनम-जनम की प्यासी है
साहिल पर चलने से पहले, अपने पाँव भिगो लेना
मैंने दरिया से सीखी है, पानी की परदादारी
ऊपर-ऊपर हँसते रहना, गहराई में रो लेना
रोते क्यों हो, दिलवालों की तो क़िस्मत ऐसी होती है
सारी रात युँही जागोगे, दिन निकले तो सो लेना
(१९८६)
</poem>