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वापसी / अवतार एनगिल
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|संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एनगिल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>इन राजपथी रास्तों पर
कितने सारे शहरों को मैंने
आंखों में बंद किया
अंधेरे
या रोशनी में रचकर देखा
घर का दरवाज़ा बाहें फैलाए खड़ा था। </poem>
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