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अस्वीकरण
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नासमझी / आकांक्षा पारे
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,
06:29, 8 नवम्बर 2009
मेरे कहने
तुम्हारे समझने के बीच
कब
,
फ़ासला बढ़ता गया
मेरे हर कहने का अर्थ
बदलता रहा तुम तक जा कर
अनिल जनविजय
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