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मातृभूमि / सोहनलाल द्विवेदी

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<poem>
ऊँचा खड़ा हिमालय
आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले झुक,
नित सिंधु झूमता है।
ऊँचा खड़ा हिमालय<br>गंगा यमुन त्रिवेणी आकाश चूमता हैनदियाँ लहर रही हैं,<br>नीचे चरण तले झुक,<br>जगमग छटा निराली नित सिंधु झूमता पग पग छहर रही है।<br><br>
गंगा यमुन त्रिवेणी<br>नदियाँ लहर रही हैंवह पुण्य भूमि मेरी,<br>जगमग छटा निराली<br>वह स्वर्ण भूमि मेरी। वह जन्मभूमि मेरी पग पग छहर रही है।<br><br>वह मातृभूमि मेरी।
वह पुण्य भूमि मेरीझरने अनेक झरते जिसकी पहाड़ियों में,<br>वह स्वर्ण भूमि मेरी।<br>वह जन्मभूमि मेरी<br>चिड़ियाँ चहक रही हैं, वह मातृभूमि मेरी।<br><br>हो मस्त झाड़ियों में।
झरने अनेक झरते<br>अमराइयाँ घनी हैं जिसकी पहाड़ियों मेंकोयल पुकारती है,<br>चिड़ियाँ चहक रही हैंबहती मलय पवन है,<br>हो मस्त झाड़ियों में।<br><br>तन मन सँवारती है।
अमराइयाँ घनी हैं<br>कोयल पुकारती हैवह धर्मभूमि मेरी,<br>बहती मलय पवन है,<br>वह कर्मभूमि मेरी। वह जन्मभूमि मेरी तन मन सँवारती है।<br><br>वह मातृभूमि मेरी।
वह धर्मभूमि मेरीजन्मे जहाँ थे रघुपति,<br>वह कर्मभूमि मेरी।<br>जन्मी जहाँ थी सीता, वह जन्मभूमि मेरी<br>श्रीकृष्ण ने सुनाई, वह मातृभूमि मेरी।<br><br>वंशी पुनीत गीता।
जन्मे जहाँ थे रघुपतिगौतम ने जन्म लेकर,<br>जन्मी जहाँ थी सीताजिसका सुयश बढ़ाया,<br>श्रीकृष्ण ने सुनाईजग को दया सिखाई,<br>वंशी पुनीत गीता।<br><br>जग को दिया दिखाया।
गौतम ने जन्म लेकर,<br>जिसका सुयश बढ़ाया,<br>जग को दया सिखाई,<br>जग को दिया दिखाया।<br><br> वह युद्ध–भूमि मेरी,<br>वह बुद्ध–भूमि मेरी।<br>वह मातृभूमि मेरी,<br>वह जन्मभूमि मेरी। <br><br/poem>
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