Changes

एक बार जो / अशोक वाजपेयी

34 bytes removed, 12:33, 8 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अशोक वाजपेयी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
एक बार जो ढल जाएंगे
शायद ही फिर खिल पाएंगे।
एक बार जो ढल जाएंगे<br>फूल शब्द या प्रेमपंख स्वप्न या यादजीवन से जब छूट गए तोशायद ही फिर खिल पाएंगे।<br>न वापस आएंगे।अभी बचाने या सहेजने का अवसर हैअभी बैठकर साथगीत गाने का क्षण है।
फूल शब्द या प्रेम<br>पंख स्वप्न या याद<br>जीवन अभी मृत्यु से जब छूट गए तो<br>दांव लगाकरफिर न वापस आएंगे।<br>अभी बचाने या सहेजने समय जीत जाने का अवसर है<br>क्षण है।अभी बैठकर साथ<br>कुम्हलाने के बादगीत गाने का क्षण है।<br>झुलसकर ढह जाने के बादफिर बैठ पछताएंगे।
अभी मृत्यु से दांव लगाकर<br>समय जीत जाने का क्षण है।<br>कुम्हलाने के बाद<br>झुलसकर ढह जाने के बाद<br>फिर बैठ पछताएंगे।<br> एक बार जो ढल जाएंगे<br>शायद ही फिर खिल पाएंगे।<br/poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits