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चींटी / अशोक वाजपेयी

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|रचनाकार=अशोक वाजपेयी
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चीटियाँ इतिहास में नहीं होती :
 
उनकी कतारें उसके भूगोल के आरपार फैल जाती हैं;
 
किसी चींटी अपनी नन्हीं सी काया पर
 
इतिहास की धूल पड़ने देती है ।
 
चींटियाँ सच की भी चिंता नहीं करतीं :
 
सच भी अपने व्यास में
 
रेंग रही चींटी को शामिल करना ज़रूरी नहीं समझता ।
 
चींटी का समय लंबा न होता होगा :
 
जितना होता है उसमें वह उस समय से परेशान होती है
 
इसका कोई ज्ञात प्रमाण नहीं है ।
 
इतिहास, सच और समय से परे और उनके द्वारा अलक्षित
 
चींटी का जीवन फिर भी जीवन है :
 
जिजीविषा से भरा-पूरा,
 
सिवाय इसके कि चींटी कभी नहीं गिड़गिड़ाती
 
कि उसे कोई देखता नहीं, दर्ज नहीं करता
 
या कि अपने में शामिल नहीं करता ।
 
कवि की मुश्किल यह नहीं कि वह चींटी क्यों नहीं है
 
बल्कि यह कि शायद वह है,
 
लेकिन न लोग उसे रहने देते हैं,
 
न इतिहास, सच या समय ।
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