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प्यार की नदी / इसाक अश्क

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|रचनाकार=इसाक अश्क
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{{KKCatKavita}}[[Category:गीत]]{{KKCatNavgeet}} <poem>
सूखी
 
गुलदस्ते सी
 
प्यार की नदी
 
व्यक्ति
 
संवेग सब
 
मशीन हो गए
 
जीवन के
 
सूत्र
 
सरेआम खो गए
 
और कुछ न कर पाई
 
यह नई सदी
 
वर्तमान ने
 
बदले
 
ऐसे कुछ पैंतरे
 
आशा
 
विश्वास
 
सभी पात सो झरे
 
सपनों की
 
सर्द लाश
 
पीठ पर लदी।
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