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हर दाने पै इक क़तरा, हर क़तरे पै इक दाना / आरज़ू लखनवी
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18:58, 9 नवम्बर 2009
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हर दाने पै इक क़तरा, हर क़तरे पै इक दाना।
इस हाथ में सुमरन है, उस हाथ में पैमाना॥
कुछ तंगियेज़िन्दाँ से दिलतंग नहीं वहशी।
फिरता है निगाहों में, वीरना-ही-वीराना॥
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