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सन्नाटा / कैलाश गौतम
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08:17, 16 मई 2007
कलरव घर में नहीं रहा सन्नाटा पसरा है
सुबह-सुबह ही सूरज का
मुंह
मुँह
उतरा-उतरा है।
पानी ठहरा
जहां
जहाँ
,
वहां
वहाँ
पर
पत्थर बहता है
हंसता हूं
हँसता हूँ
जब तुम कबीर की
साखी देते हो
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Hemendrakumarrai