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म्हारो कांई करसी / मीराबाई

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रचनाकार: [[मीराबाई]]
[[Category:मीराबाई]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:पद]]

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राणोजी रूठे तो म्हारो कांई करसी,<br>
म्हे तो गोविन्दरा गुण गास्याँ हे माय।।<br>
राणोजी रूठे तो अपने देश रखासी,<br>
म्हे तो हरि रूठ्यां रूठे जास्याँ हे माय।<br>
लोक-लाजकी काण न राखाँ,<br>
म्हे तो निर्भय निशान गुरास्याँ हे माय।<br>
राम नाम की जहाज चलास्याँ, <br>
म्हे तो भवसागर तिर जास्याँ हे माय।<br>
हरिमंदिर में निरत करास्याM, <br>
म्हे तो घूघरिया छमकास्याँ हे माय।<br>
चरणामृत को नेम हमारो,<br>
म्हे तो नित उठ दर्शण जास्याँ हे माय।<br>
मीरा गिरधर शरण सांवल के,<br>
म्हे ते चरण-कमल लिपरास्यां हे माय।<br><br>