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राम रतन धन पायो / मीराबाई

871 bytes added, 13:16, 10 दिसम्बर 2006
रचनाकार: [[मीराबाई]]
[[Category:मीराबाई]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:पद]]

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पायो जी म्हे तो राम रतन धन पायो।। टेक।।<br>
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।।<br>
जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो।।<br>
खायो न खरच चोर न लेवे, दिन-दिन बढ़त सवायो।।<br>
सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।।<br>
"मीरा" के प्रभु गिरधर नागर, हरस हरस जश गायो।।<br><br>