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लाज राखो महाराज / मीराबाई

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रचनाकार: [[मीराबाई]]
[[Category:मीराबाई]]
[[Category:कविताएँ]]
[[Category:पद]]

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अब तो निभायां सरेगी बाँह गहे की लाज।<br>
समरथ शरण तुम्हारी सैयां सरब सुधारण काज।।<br>
भवसागर संसार अपरबल जामे तुम हो जहाज।<br>
गिरधारां आधार जगत गुरु तुम बिन होय अकाज।।<br>
जुग जुग भीर हरी भगतन की दीनी मोक्ष समाज।<br>
"मीरा" शरण गही चरणन की लाज रखो महाराज।।<br><br>